पश्चिम बंगाल के कुल्टी से वेनिस फिल्म फेस्टिवल तक का सफर, अनुपर्णा रॉय ने दिखाया कि जुनून और मेहनत से कुछ भी संभव है।
अनुपर्णा रॉय का सुनहरा सफर: एक साधारण परिवार से अंतरराष्ट्रीय मंच तक
भारत की युवा और प्रतिभाशाली फिल्म निर्माता अनुपर्णा रॉय ने 82वें वेनिस इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में ‘Orizzonti’ (Horizons) श्रेणी में Best Director Award जीतकर देश का नाम रोशन किया है। उनकी फिल्म “Songs of Forgotten Trees” को वैश्विक स्तर पर सराहना मिली है।
कहां से शुरू हुआ ये सफर?
- अनुपर्णा रॉय का जन्म पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले के छोटे से गांव नारायणपुर में एक साधारण मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ।
- प्रारंभिक शिक्षा नारायणपुर प्राइमरी स्कूल में हुई।
- क्लास 10 तक पढ़ाई रानीपुर कोलियरी हाई स्कूल, फिर नाओपाड़ा हाई स्कूल से हायर सेकेंडरी।
- कुल्टी कॉलेज से इंग्लिश ऑनर्स में ग्रेजुएशन, फिर दिल्ली से मास कम्युनिकेशन में मास्टर्स।
नौकरी से निर्देशन तक का सफर
- मास्टर्स के बाद अनुपर्णा ने एक आईटी कंपनी में नौकरी की।
- कोविड के बाद 2020 में मुंबई स्थानांतरित हुईं, जहां फिल्मों के प्रति उनका रुझान और गहरा हुआ।
- स्क्रिप्ट राइटिंग से शुरुआत की और फिर फिल्म निर्देशन में कदम रखा।
पहली फिल्म ‘Run to River’ से अंतरराष्ट्रीय पहचान तक
- उनकी पहली फिल्म ‘Run to River’, जो पुरुलिया की पृष्ठभूमि पर आधारित थी, को खूब सराहा गया।
- लेकिन ‘Songs of Forgotten Trees’ ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई और अब वेनिस फिल्म फेस्टिवल में Best Director का खिताब उनके नाम हुआ।
परिवार की प्रतिक्रिया: गर्व और भावनाओं से भरा पल
अनुपर्णा के पिता, श्री ब्रह्मानंद रॉय, जो ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड में प्रोडक्शन मैनेजर रह चुके हैं, बोले:
“हम एक बेहद साधारण परिवार हैं। कभी सोचा नहीं था कि हमारी बेटी वेनिस पहुंचेगी और बेस्ट डायरेक्टर बनेगी।”
मां मनीषा रॉय, एक गृहिणी, भावुक होकर बोलीं:
“बचपन से पढ़ाई में लगन थी। कभी फिल्मों का सपना नहीं देखा, लेकिन जो ठान लेती थी, कर के दिखाती थी।”
कुल्टी से नारायणपुर तक जश्न का माहौल
- जैसे ही यह खबर फैली, कुल्टी से लेकर नारायणपुर तक जश्न का माहौल बन गया।
- रिश्तेदार, दोस्त और पड़ोसी उनकी वापसी का इंतजार कर रहे हैं।
- पिता बोले: “वो जैसे ही लौटेगी, हम गांव जाकर पूरे परिवार के साथ जश्न मनाएंगे।”
- मां ने कहा: “मैं उसकी पसंदीदा डिश बनाऊंगी। उसे खुश देखकर ही हमें सबसे बड़ा इनाम मिलेगा।”
एक प्रेरणादायक कहानी: छोटे गाँव से वैश्विक मंच तक
पुरुलिया के एक छोटे से क्लासरूम से वेनिस के रेड कारपेट तक, अनुपर्णा की यात्रा बताती है कि यदि दृढ़ निश्चय और जुनून हो, तो कोई सपना असंभव नहीं होता।
उनकी सफलता सिर्फ एक व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं, बल्कि कुल्टी, पुरुलिया, पश्चिम बंगाल और पूरे भारत के लिए गर्व का विषय है।
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