5 साल से बिना NABL सर्टिफिकेशन के चल रही लैब्स ने की करोड़ों की वसूली, मरीजों की जान पर बन आई
संगीताबाई की कहानी: गलत रिपोर्ट और छूट गया इलाज
भोपाल के जेपी डिस्ट्रिक्ट अस्पताल में एक सुबह, संगीता नाम की महिला अपने छह वर्षीय बीमार बेटे के साथ लैब के बाहर बैठी थी। बच्चे को तेज़ बुखार था और डॉक्टर ने मलेरिया टेस्ट करवाने को कहा। रिपोर्ट आई – नेगेटिव। लेकिन तबीयत बिगड़ती गई, और जब निजी अस्पताल में दोबारा टेस्ट हुआ, तो मलेरिया पॉज़िटिव निकला।
“सरकारी लैब की रिपोर्ट गलत थी, हमने कीमती समय खो दिया,” – संगीताबाई
झूठी रिपोर्टों की लंबी कड़ी: केवल संगीताबाई नहीं हैं अकेली
- 85 सरकारी लैब्स, बिना NABL सर्टिफिकेशन, CGHS-NABL रेट्स पर कर रहीं थीं बिलिंग
- मरीजों की सेहत पर असर, डॉक्टरों को गलत रिपोर्ट, और जनता के टैक्स का दुरुपयोग
- कुल घोटाले की अनुमानित राशि: ₹500 से ₹700 करोड़, जिसमें ₹300 करोड़ केवल ओवरबिलिंग
2020 की टेंडर प्रक्रिया में भारी गड़बड़ी
- मशीनों और रीजेंट्स के लिए US FDA अप्रूवल अनिवार्य था, लेकिन उपयोग नहीं हुआ
- टेंडर में केवल एक योग्य बोलीदाता रहा – फिर भी दोबारा टेंडर नहीं किया गया
- Science House के प्रमोटर पहले से भ्रष्टाचार के आरोपी
- POCT Services पर कई राज्यों में ब्लैकलिस्टिंग के बावजूद मिला कॉन्ट्रैक्ट
- एक मान्य बोलीदाता को जानबूझकर नजरअंदाज किया गया
बिलिंग का खेल: बिना सर्टिफिकेशन के लिया NABL रेट
- कोई लैब NABL प्रमाणित नहीं थी, फिर भी रेट वही लिए गए
- 31% की डिस्काउंट का दावा, लेकिन भुगतान CGHS-NABL रेट पर
- सिर्फ बीते साल में कुछ लैब्स ने NABL सर्टिफिकेशन के लिए आवेदन किया है
सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों का भरोसा डगमगाया
“हम कर्मचारी हैं, हमसे सब कुछ नहीं हो सकता,” – अनकित तोमर, लैब प्रभारी, जेपी अस्पताल
- निजी पैथोलॉजी विशेषज्ञों ने रिपोर्ट्स को बताया भरोसे के लायक नहीं
- डॉक्टरों को मजबूरी में इलाज करना पड़ता है गलत रिपोर्टों के आधार पर
कंपनियों का दावा बनाम हकीकत
- दावा: 40,000 टेस्ट प्रतिदिन, ₹60-70 करोड़ का निवेश
- हकीकत: घटिया सेवाओं के लिए NABL रेट पर बिलिंग
- बिहार में यही कंपनियाँ 70% सस्ते दामों पर दे रही थीं सेवा
जांच एजेंसियों की चुप्पी और मंत्री का गोलमोल जवाब
- Economic Offences Wing (EOW) ने Science House पर मामला दर्ज किया
- स्वास्थ्य मंत्री राजेन्द्र शुक्ला ने कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया
- मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कबूल किया:
- “2020 में जो रेट तय हुए, आज भी वही लागू हैं”
- “कुछ लैब्स ने अब NABL के लिए आवेदन किया है, लेकिन शुरुआत में कोई सर्टिफिकेशन नहीं था”
- “अगर कोई शिकायत है, तो भेजिए, जांच करवाऊँगा”
मुख्य बिंदु संक्षेप में:
- बिना मान्यता प्राप्त लैब्स से 5 साल तक रिपोर्ट बनवाना
- जनता से धोखाधड़ी, डॉक्टरों को ग़लत जानकारी
- ₹700 करोड़ तक का संभावित घोटाला
- सरकारी सिस्टम में संस्थागत चुप्पी और मिलीभगत
- मरीजों की जान से खिलवाड़ और जनता के टैक्स की लूट
निष्कर्ष: एक स्वास्थ्य घोटाला, जिसमें भरोसे की कीमत चुकाई गई
मध्य प्रदेश में यह घोटाला सिर्फ भ्रष्टाचार की कहानी नहीं, बल्कि जनता के विश्वास की हत्या है। सस्ती सेवाओं के नाम पर लोगों की जान के साथ समझौता, और सरकार की निगरानी व्यवस्था का फेल होना – यह सब मिलकर एक गहरी चिंता खड़ी करते हैं।
जब तक दोषियों पर सख्त कार्रवाई नहीं होती, यह मामला एक याद दिलाता रहेगा कि कैसे जनस्वास्थ्य प्रणाली, जिम्मेदारी के बिना, क्रूर व्यापार का माध्यम बन सकती है।