सनातन धर्म में पैर छूने की परंपरा तो प्राचीन है, लेकिन कुछ ऐसे लोग हैं जिनके पैर छूना शास्त्रों में वर्जित बताया गया है। आइए जानें वे 9 खास लोग और कारण।
सनातन संस्कृति में पैर छूने की परंपरा और उसकी सीमाएं
भारतीय सनातन संस्कृति में बड़े-बुजुर्गों के पैर छूना सम्मान और विनम्रता का प्रतीक माना जाता है। बचपन से सिखाया जाता है कि बड़े या आदरणीय व्यक्ति से मिलते समय उनके पैर छूने चाहिए। लेकिन शास्त्रों में कुछ ऐसे विशेष नियम बताए गए हैं, जिनके अनुसार कुछ लोगों के पैर छूने से बचना चाहिए।
किन 9 लोगों के पैर नहीं छूने चाहिए?
1. दामाद को ससुर के पैर
महादेव द्वारा ससुर दक्ष का सिर काटे जाने की कथा के बाद से, दामाद को ससुर के पैर छूना वर्जित माना जाता है। यह नियम आज भी कुछ स्थानों पर लागू है।
2. भांजे को मामा के पैर
भगवान कृष्ण द्वारा मामा कंस के वध के कारण भांजे को मामा के पैर छूने की मनाही है। यह परंपरा कई धार्मिक ग्रंथों में उल्लिखित है।
3. कुंवारी कन्या
हिंदू धर्म में कुंवारी कन्या को मां दुर्गा का स्वरूप माना जाता है। इसलिए उनके पैर छूना पाप माना गया है।
4. सन्यासी
सन्यासी केवल अपने गुरु के पैर छूते हैं। अन्य किसी के पैर छूना उनके लिए उचित नहीं माना जाता।
5. लेटे हुए व्यक्ति के पैर
लेटे हुए व्यक्ति के पैर छूना अशुभ माना जाता है, सिवाय मृत व्यक्ति के, जिनके पैर लेटी अवस्था में छूए जाते हैं।
6. मंदिर में किसी के पैर नहीं छूने चाहिए
मंदिर में किसी व्यक्ति के पैर छूना देव प्रतिमा का अपमान माना जाता है। जरूरत हो तो पैर मंदिर के बाहर छूएं।
7. अशुद्धि की स्थिति में पैर न छुएं
अगर कोई व्यक्ति अशुद्ध स्थिति में हो या आप स्वयं अशुद्ध हों, तो इस अवस्था में पैर छूने या पैर छूवाने से बचना चाहिए।
8. श्मशान से लौटे व्यक्ति के पैर
अंतिम संस्कार से लौटे व्यक्ति को अशुद्ध माना जाता है। स्नान से पहले उसके पैर नहीं छूने चाहिए।
9. पूजा कर रहे व्यक्ति के पैर
पूजा के समय किसी के पैर छूना पाप माना जाता है। पूजा समाप्ति के बाद ही पैर छूएं।
सारांश : सनातन संस्कृति में पैर छूने की परंपरा महत्वपूर्ण है, लेकिन शास्त्र हमें कुछ सीमाएं भी बताते हैं। इन 9 विशेष परिस्थितियों में पैर न छूने का नियम सदियों से चला आ रहा है ताकि धार्मिक एवं सांस्कृतिक शुद्धता बनी रहे।
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